आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) कहते हैं। इस दिन अपने गुरु की पूजा का विधान है। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। इस कारण उनका वेद व्यास भी कहा जाता है। वह आदिगुरु कहलाते है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) को व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima) नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दुनिया में कई विद्वान हुए हैं। परंतु चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता व्यास ऋषि थे, जिनकी आज के दिन पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए। इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने–अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करके उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
गुरु का जीवन में विशेष स्थान होता है। यदि योग्य गुरु का साथ मिल जाए तो उनके आशीर्वाद से जीवन के संघर्ष कम होते है। यश व उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। गुरु अपने वचनों से हमारे मन की परेशानी कम करते हैं।
हमें यह याद रखना चाहिए कि महात्माओं का श्राप भी मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यदि राजा परीक्षित को ऋषि का श्राप नहीं होता तो उनकी संसार के प्रति जो आसक्ति थी वह दूर नहीं होती। आसक्ति होने के कारण उन्हें वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना श्रीमद्भागवत के श्रवण का अधिकार प्राप्त नहीं होता। साधु के श्राप से ही उन्हें भगवान नारायण, शुकदेव के दर्शन और उनके द्वारा देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत का श्रवण प्राप्त हुआ।
इसके मूल में ही साधु का श्राप था जब साधु का श्राप इतना मंगलकारी है तो साधु की कृपा न जाने क्या फल देने वाली होती होगी। अत: हमें गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरु का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) से चार महीने तक ऋषि–मुनि एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं, इस समय मौसम भी अनुकूल होता है अत: उनके अनुयायी उनके शिष्य, भक्त जन अपने गुरु के चरणों में उपस्थित रहकर ज्ञान, भक्ति, शान्ति, योग एवं अपने कर्तव्यों के पालन आदि की शिक्षा प्राप्त करते है, उनके सत्संग का लाभ उठाते है ।
हिन्दु धर्म शास्त्रों में गुरू को अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार गुरु की कृपा से ही धर्म, ज्ञान, सांसारिक कर्तव्यों का पालन एवं ईश्वर की भक्ति संभव है ।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय“॥
इस श्लोक में गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया गया है क्योंकि वह ही हमें अज्ञान रूप अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर लेकर जाता है और उसी के दिखाए हुए मार्ग पर चलकर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है ।
गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है
गुरु अपने शिष्य की ना केवल समस्त जिज्ञासाएं ही शान्त करता है वरन वह उसको जीवन के सभी संकटो से बाहर निकलने का मार्ग भी बतलाता है । गुरु ही शिष्य को सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है , अपने शिष्य को नयी ऊँचाइयों पर ले जाता है।शास्त्रों के अनुसार जीवन में ज्ञान, प्रभु भक्ति, सुख–शान्ति और देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए, अपने समस्त कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए सच्चे गुरु की नितान्त आवश्यकता होती है। वास्तव में जिस भी व्यक्ति से हम से कुछ भी सीखते हैं , वह हमारा गुरु होता है और हमें उसका अवश्य ही सम्मान करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के वर्षा ऋतु ही क्यों श्रेष्ठ?
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाई जाती है। अगर नहीं तो आज हम आपको बताएँगे कि आखिर ऐसा क्यों हैं। दरअसल वर्षा ऋतू में पूर्णिमा न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है| यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है|ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं|

गुरु पूर्णिमा 2020: जानें तिथि और घर पर पूजा करने की विधि-मंत्र
व्यास पूजा विधि
सबसे पहले अपने गुरु स्थान पर जाये या जिन्होंने गुरु नही बना रखा वो निराश न हो उन के लिये भी गुरु पूजा की विधि हैं
यदि आपके गुरु इस दुनिया में सशरीर नहीं हैं या आपने किसी को अपना आध्यात्मिक गुरु नहीं बनाया है, ऐसे में आप व्यासजी की पूजा कर सकते हैं। इसके लिए स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान या मंदिर में एक चौकी पर सफेद या केसरिया रंग का कपड़ा बिछाकर आटे से चोक बना लें। इसमें व्यासजी की मूर्ति रखें। यदि मूर्ति न हो तो आप वेद–पुराण या अन्य धार्मिक पुस्तकें रखकर उनकी पूजा भी कर सकते हैं। इसके बाद योग्य पंडितजी दान–दक्षिणा दें।
इस दिन प्रातःकाल स्नान पूजा आदि नित्यकर्मों को करके उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
फिर व्यास जी के चित्र को सुगन्धित फूल या माला चढ़ाकर अपने गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए।
इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर कुछ दक्षिणा यथासामर्थ्य धन के रूप में भेंट करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
सबसे पहले अपने गुरु स्थान पर जाये या जिन्होंने गुरु नही बना रखा वो निराश न हो उन के लिये भी गुरु पूजा की विधि हैं
सबसे पहले अपने घर में साफ सफाई करे और एक स्थान पर जगत गुरु वेद व्यास जी की प्रतिमा लगाये या एक सफ़ेद कपड़ा लेकर उस पर पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण गंध से बारह-बारह रेखाएं बनाकर व्यासपीठ बनाएं।
उस के बाद इस मंत्र का उचारण करे तत्पश्चात गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र से संकल्प करें।
इस के बाद दशों दिशा में जल छिडके
अब ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा, आवाहन आदि करें।
सबसे पहले आप गुरु मंत्र का उचारण करे
गुर्रुब्रह्मï गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परमब्रह्मï तस्मै श्री गुरवे नम:।।
इस के बाद आप गुरु की प्रतिमा पर फुल चढ़ाये
इस के बाद आप एक दीपक जलाये देशी घी का
अब आप गुरु के नाम की जोत जलाये और भोग लगाये
और गुरु की आराधना करे और आरती करे और पुरे दिन गुरु के नाम का व्रत रखे
इस के बाद आप गुरु के सामने हाथ जोड़ कर विनती करे की हें गुरु देव आप हमारी जिन्दगी से अंधकार को दूर करे और हमारे जीवन को साकार करे.