
कुंडली के किस योग के कारण लेना पड़ता है कर्ज
इस दुनिया का अगर कोई सबसे बड़ा दुख है तो वो है कर्ज। कर्ज होने पर न केवल वह व्यक्ति परेशान रहता है बल्कि उसका पूरा परिवार कष्टों का सामना करता है। कहते हैं कि किसी दुश्मन पर ऐसी मुसीबत न आए।
इसमें दबा व्यक्ति अपने जीवन को नष्ट तक करने के बारे में सोच सकता है। इसकी वजह से मानहानि, पैसों की तंगी और पारिवारिक कलह झेलनी पड़ती है। जिसके पास पैसा है उसके पास पॉवर है, ये बात बिलकुल सच है। इसलिए कर्ज में डूबा व्यक्ति अपने और अपने परिवार के लिए मुसीबत बन जाता है।
” हमारी कुंडली में “छटा भाव” कर्ज का भाव माना गया है अर्थात कुंडली का छटा भाव ही व्यक्ति के जीवन में कर्ज की स्थिति को नियंत्रित करता है जब कुंडली के छटे भाव में कोई पाप योग बना हो या षष्टेश ग्रह बहुत पीड़ित हो तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है जैसे – यदि छटे भाव में कोई पाप ग्रह नीच राशि में बैठा हो, छटे भाव में राहु–चन्द्रमाँ या राहु–सूर्य के साथ होने से ग्रहण योग बन रहा हो, छटे भाव में राहु मंगल का योग हो, छटे भाव में गुरु–चाण्डाल योग बना हो, शनि–मंगल या केतु–मंगल की युति छटे भाव में हो तो ऐसे पाप या क्रूर योग जब कुंडली के छटे भाव में बनते हैं तो व्यक्ति को कर्ज की समस्या बहुत परेशान करती है और री–पेमेंट में बहुत समस्यायें आती हैं। छटे भाव का स्वामी ग्रह भी जब नीच राशि में हो अष्टम भाव में हो या बहुत पीड़ित हो तो कर्ज की समस्या होती है इसके आलावा “मंगल” को कर्ज का नैसर्गिक नियंत्रक ग्रह माना गया है अतः यहाँ मंगल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है यदि कुंडली में मंगल अपनी नीच राशि(कर्क) में हो आठवें भाव में बैठा हो या अन्य प्रकार से अति पीड़ित हो तो भी कर्ज की समस्या बड़ा रूप ले लेती है”
विशेष
यदि छटे भाव में बने पाप योग पर बलि बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो कर्ज का री पेमेंट संघर्ष के बाद हो जाता है या व्यक्ति को कर्ज की समस्या का समाधान मिल जाता है परन्तु बृहस्पति की शुभ दृष्टि के आभाव में समस्या बनी रहती है छटे भाव में पाप योग जितने अधिक होंगे उतनी समस्या अधिक होगी अतः कुंडली का छठा भाव पीड़ित होने पर लोन आदि लेने में भी बहुत सतर्कता बरतनी चाहिये
बहुत बार व्यक्ति की कुंडली अच्छी होने पर भी व्यक्ति को कर्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है जिसका कारण उस समय कुंडली में चल रही अकारक ग्रहों की दशाएं या गोचर ग्रहों का प्रभाव होता है जिससे अस्थाई रूप से व्यक्ति उस विशेष समय काल के लिए कर्ज के बोझ से घिर जाता है उदाहरणार्थ अकारक षष्टेश और द्वादशेश की दशा व्यक्ति कर्ज समस्या देती है अतः प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अलग अलग ग्रह-स्थिति और अलग अलग दशाओं के कारण व्यक्तिगत रूप से तो गहन विश्लेषण के बाद ही किसी व्यक्ति के लिए चल रही कर्ज समस्या के सटीक ज्योतिषीय उपाय निश्चित किये जा सकते हैं अतः यहाँ हम कर्जमुक्ति के लिए ऐसे कुछ मुख्य उपाय बता रहे हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति कर सकता है
उपाय –
मंगल यन्त्र को घर के मंदिर में लाल वस्त्र पर स्थापित करें और प्रतिदिन इस मंत्र का एक माला जाप करें – ॐ क्राम क्रीम क्रोम सः भौमाय नमः।
प्रति दिन ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
हनुमान चालीसा का पाठ करें।
जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है| इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं|
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है| जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है| 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है| अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं|
— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।
—- कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
—– षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है|
—छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो|
—-अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
—- अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के प्रति अनिच्छुक होते हैं|
— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है|
— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है|