Navratri- Durga Pooja 2020

वर्ष में चार नवरात्र होते हैं-वासंतिक, आषाढ़ीय, शारदीय, माघीय। इन नवरात्र में चैत्र एवं आश्विन का नवरात्र लोकप्रसिद्ध है, जबकि आषाढ़ और माघ का नवरात्र गुप्त नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र में शक्ति साधना का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है। नवरात्र के दिवस काल में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
दुर्गा सप्तशती के पाठ के कई विधि विधान है। दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के सात सौ श्लोक का एक भाग है।
दुर्गा सप्तशती में अध्याय एक से तेरह तक तीन चरित्र विभाग हैं। इसमें सात सौ श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती के छह अंग तेरह अध्याय को छोड़कर हैं। कवच, कीलक, अर्गला दुर्गासप्तशती के प्रथम तीन अंग और प्रधानिक आदि तीन रहस्य हैं।
इसके अलावा और कई मंत्र भाग है जिसे पूरा करने से दुर्गा सप्तशती पाठ की पूर्णता होती है। इस संदर्भ में विद्वानों में मतांतर है। दुर्गा-सप्तशती को दुर्गा-पाठ, चंडी-पाठ से भी संबोधित करते हैं। चंडी पाठ में छह संवाद है। महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को दुर्गा का चरित्र सुनाया। तदनंतर यही कथा महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि (क्रौप्टिक) को सुनायी। यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी से कही। जैमिनी महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे।
यही कथा संवाद महर्षि वेदव्यास ने मार्क ण्डेय पुराण में यथावत् क्रम वर्णन कर लोकोपकार के लिए संसार में प्रचारित की।
इस प्रकार दुर्गा सप्तशती में दुर्गा के चरित्रों का वर्णन है।
सार्थ नवचण्डी पाठ, एक ऐसा पाठ है जिसे प्रयोग में लाकर उसके उचित फल प्राप्त किए गए है। यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का एक उपयोगी प्रयोग सिद्ध हुआ है।”
यह प्रयोग रुद्रयामल तथा वाराहीतन्त्र में दर्शित है। इस अनुष्ठान में ११ ब्राह्मणों द्वारा सप्तशती पाठ, एक ब्राह्मण द्वारा सप्तशती के अर्धांश का पाठ तथा एक ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायो का पाठ होता है।
इसका फल वहां इस प्रकार बताया गया है कि, जो “सार्थ नवचण्डी प्रयोग को करता है वह प्राणान्तक भय से मुक्त होता है। राज्य, श्री, सर्वविध सम्पत्ति एवं सभी ईप्सित कामनाओं को प्राप्त करता है।
रुद्रयामल में कहा गया है
सार्ध नवचण्डी प्रयोग अति गुप्त है और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इस प्रयोग को मैं तुम्हें कहता हूं। तुम इसे सावधान होकर सुनो। इस प्रयोग में दुर्गासप्तशती के पूर्ण पाठ नौ ब्राह्मणों द्वारा तथा एक ब्राह्मण द्वारा अर्धपाठ किया जाता है। अर्ध-पाठ का क्रम इस प्रकार है
मधुकैटभनाश
महिषासर- विनाश
शक्रादिस्तुति देवीसूक्त
नारायणस्तुति
फलानुकीर्तन और
वरप्रदान
इसी को अर्धपाठ कहते हैं और एक पण्डित रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करता है। यह अर्धपाठ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा गया है। अर्धपाठ के बिना नौ पाठों का फल प्राप्त नहीं होता है।
यह प्रयोग शुभ मुहूर्त अथवा पर्व के दिनों में किसी दिन ११ ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है।
सर्वप्रथम कुमारिका-पूजन करके उसे भोजन कराए तथा प्रार्थनापूर्वक उससे प्रयोग करने की अनुमति प्राप्त की जाती है।
तदनन्तर ग्रह शान्ति-विधान के अनुसार गणपति-स्मरण से भद्रपीठ पूजनान्त प्रयोग किया जाता है।
भद्रपीठ अष्टदल एवं त्रिकोण से बनाकर उससे भवानीशंकर की सांगोपांग पूजा जाती है।
तत्पश्चात् एक ब्राह्मण रुद्राष्टाध्यायी पाठ तथा ब्राह्मण सप्तशती पाठ करें। एक ब्राह्मण अंग पाठ करके बाद में अर्धपाठ करे जिसमें प्रथमाध्याय से चौथे अध्याय (शक्रादिस्तुति) में रक्ष सर्वत तक, पंचमाध्याय में प्रारम्भ से भक्तिविनम्रमूर्तिभिः तक फिर एकादशाध्याय में प्रारम्भसे वरदा भव तक तथा अन्त में १२ और १३वां अध्याय का पूर्ण पाठ करें।
पाठ के पश्चात् उत्तरांग करके अग्निस्थापनादि से पूर्णाहुत्यन्त हवन करे।
इसमें नवग्रह की समिधाओं से ग्रहयाग, सप्तशती के पूर्ण पाठ मन्त्रों का हवन श्रीसूक्तहवन तथा शिवमन्त्र रूद्रसूक्त का हवन भी अपेक्षित है।
तदनन्तर ब्राह्मण-भोजन कुमारिका एवं बटुकों को भोजन कराये।
सर्व जन कल्याणार्थ अखिल विश्व विघ्न निवारण सार्थ नवचण्डी पाठ एवं यज्ञ सहभाग एवं अनुदान हेतु संपर्क करें—7620314972
सहभाग- ब्राह्मण दक्षिणा एवं वस्त्र दान
1 ब्राह्मण दक्षिणा 5001
3 ब्राह्मण दक्षिणा 15001
5 ब्राह्मण दक्षिणा 20001
11 ब्राह्मण दक्षिणा 55001
सहभाग- हवन अनुदान राशी -21000
सहभाग- ब्राह्मण–भोजन – 11000
सहभाग- नौ कुमारिका एवं बटुक भोजन – 11000
सहभाग– अन्न दान – चावल, गेहू, दाल, शक्कर, तेल, घी इच्छानुसार
सम्बंधित अधिक जानकारी हेतु फोन / व्हाट्सएप से संपर्क करे: 7620314972– ज्योतिर्विद श्यामा गुरुदेव (आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषीय चिंतक)
सार्थ नवचण्डी के तेरह पाठों में अलग अलग बाधाओं के निवारण के लिए उपाय दिए गए हैं। पहले अध्याय का पाठ करने से समस्त प्रकार की चिताओं का नाश हो जाता है। दूसरे अध्याय को करने से अदालती दिक्कतों में सफलता प्राप्त होती है।
सार्थ नवचण्डी में 13 अध्याय और 30 सिद्ध सम्पुट हैं। हर मनोकामना की पूर्ति के लिए अलग मंत्र है। मां दुर्गा की पूजा करते समय इन मंत्रों का आप जाप किया जाता है।.
रोग नाश के लिए मंत्र:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
आरोग्य एवं सौभाग्य का मंत्र:
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
विपत्ति नाश और शुभता के लिए मंत्र:
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र:
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तु ते।।
अपने कल्याण के लिए मंत्र:
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते।।
रक्षा पाने के लिए मंत्र:
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
प्रसन्नता के लिए मंत्र:
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।
स्वर्ग और मोक्ष के लिए मंत्र:
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी। त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।
सार्थ नवचण्डी पाठ के लाभ:-
सार्थ नवचण्डी के तेरह पाठों में अलग अलग बाधाओं के निवारण के लिए उपाय दिए गए हैं।
पहले अध्याय का पाठ करने से समस्त प्रकार की चिताओं का नाश हो जाता है।
दूसरे अध्याय का पाठ करने से अदालती दिक्कतों में सफलता प्राप्त होती है।
तीसरे अध्याय से शत्रु बाधा से छुटकारा मिलता है।
चौथे अध्याया को पढ़ने से शक्ति मिलती है।
पांचवे अध्याय को करने से आध्यात्म की शक्ति प्राप्त होती है।
छठे अध्याय को करने से मन में बसे डर का नाश हो जाता है।
सातवें अध्याय के पाठ से इच्छाओं की प्राप्ति होती है।
मिलाप और वशीकरण के लिए आठवें अध्याय का पाठ महत्वपूर्ण है।
नौवे अध्याय का पाठ गुम हुए व्यक्ति की तलाश में फलदायी होता है।
दसवे अध्याय का पाठ भी गुम हुए व्यक्ति की तलाश के लिए किया जाता है।
ग्यारहवें अध्याय का पाठ कारोबार में वृद्धि के लिए किया जाता है।
बारहवें अध्याय का पाठ धन लाभ और मान सम्मान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
तेरहवे अध्याय का पाठ अध्यात्म में सिद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इस प्रयोग के द्वारा
दुःसाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और असाध्य रोगी नीरोगी बन जाते हैं ।
कोर्ट कचहरी में बरसों से अटके मामले निपट जाते है।
पति पत्नी के तलाक आपसी समझ बूझ से निपट जाते हैं ।
रास्ता भटके बच्चे वापिस सद्मार्ग पर लौट आते है ।
दिवालिया हो चुके व्यवसायी फिर से प्रगति के मार्ग पर चल पड़ते है।
सार्थ नवचण्डी पाठ की हवन विधि-
