गीता में स्वयं भगवान ने कहा है मासाना मार्गशीर्षोऽयम्। अगहन मास को हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास भी कहा जाता है। यूं तो हर माह की अपनी विशेषताएं है लेकिन मार्गशीर्ष/अगहन का सम्पूर्ण मास धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पवित्र माना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार देवों के प्रिय कार्तिक मास के बाद मार्गशीर्ष मास आता हैं। इस माह को अगहन मास भी कहा जाता हैं। वैसे तो प्रत्येक मास का अपना अलग महत्व होता है। लेकिन मार्गशीर्ष मास को धार्मिक तौर पर अत्यंत पवित्र माना जाता हैं।
इस महीने को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप कहा गया है। इन दिनों में श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है। जानिए इस माह में किस तिथि पर कौन से शुभ काम किस दिन किए जा सकते हैं।
जानिए मार्गशीर्ष मास में किस तिथि पर कौन से शुभ काम किस दिन किए जा सकते हैं।
मार्गशीर्ष यानी अगहन महीना अत्यन्त पवित्र माना जाता है। इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इन्हीं 27 नक्षत्रों में से एक है मृगशिरा नक्षत्र। ये महीना श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय माना गया है। शास्त्रों में इस महीने को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप कहा गया है। इन दिनों में श्रीकृष्ण एवं शंख पूजन का विशेष महत्व है। साधारण शंख को श्रीकृष्ण को पाञ्चजन्य शंख के समान समझकर उसकी पूजा करने से सभी मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष से ही वर्ष प्रारम्भ किया। गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि
“मासानांमार्गशीर्षोऽयम्” यानी सभी महीनों में मार्गशीर्ष महीना मेरा ही स्वरूप है। सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था।
स्कंदपुराण के अनुसार, भगवान की कृपा प्राप्त करने की कामना करने वाले श्रद्धालुओं को अगहन मास में व्रत आदि करना चाहिए। इस माह में किए गए व्रत-उपवास से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
इसी माह में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था उपदेश
मार्गशीर्ष मास भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है. भक्तवत्सल भगवान ने स्वयं अपनी वाणी से कहा है कि मार्गशीर्ष मास स्वयं मेरा ही स्वरूप है. इस पवित्र माह में तीर्थाटन और नदी स्नान से पापों का नाश होने के साथ मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. मार्गशीर्ष की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में धनुर्धारी अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाया था. इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनायी जाती है. इस माह में गीता का दान भी शुभ माना जाता है. गीता के एक श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष मास की महिमा बताते हुए कहते हैं
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्। मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः
इसका अर्थ है गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम, छंदों में गायत्री तथा मास में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत हूं. शास्त्रों में मार्गशीर्ष का महत्व बताते हुए कहा गया है कि हिन्दू पंचांग के इस पवित्र मास में गंगा, युमना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से रोग, दोष और पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है.
1. सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया।
2. इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। यह अत्यंत शुभ होता है।
3. मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक ‘जातिस्मर’ पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है, जहां फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
4 . मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। इस दिन माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर उत्सव भी किया जाना चाहिए।
5. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही ‘दत्तात्रेय जयन्ती’ मनाई जाती है।
6. मार्गशीर्ष मास में इन 3 पावन पाठ की बहुत महिमा है। 1. विष्णुसहस्त्र नाम, 2. भगवत गीता और 3. गजेन्द्रमोक्ष। इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ें।
7. इस मास में ‘श्रीमद भागवत’ ग्रन्थ को देखने भर की विशेष महिमा है। स्कन्द पुराण में लिखा है- घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।
8. इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं।
9. इस माह में शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।
10. अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का रूप है।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2020 में मार्गशीर्ष माह का आरंभ कार्तिक पूर्णिमा के पश्चात देश की राजधानी दिल्ली के समयानुसार 15 दिसंबर को होगा जो कि 13 जनवरी को मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक रहेगा।
मार्गशीर्ष मास के व्रत व त्यौहार
मार्गशीर्ष मास में बड़े स्तर पर मनाया जाने वाला कोई त्योहार तो नहीं आता लेकिन धार्मिक रूप से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां इस माह में अवश्य पड़ती हैं जिनमें व्रत व पूजा करके पुण्य की प्राप्ति की जा सकती है। आइये जानते हैं इन तिथियों के बारे में।
मार्गशीर्ष गुरुवार व्रत की तिथियां
मार्गशीर्ष का पवित्र महीना 15 दिसंबर (मंगलवार) से शुरू हो रहा है, जबकि मार्गशीर्ष गुरुवार का पहला व्रत 17 दिसंबर को पड़ेगा. मार्गशीर्ष का महीना 13 जनवरी 2021 को खत्म होगा.
पहला मार्गशीर्ष गुरुवार- 17 दिसंबर 2020
दूसरा मार्गशीर्ष गुरुवार- 24 दिसंबर 2020
तीसरा मार्गशीर्ष गुरुवार- 31 दिसंबर 2020
चौथा मार्गशीर्ष गुरुवार- 07 जनवरी 2021
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि
मार्गशीर्ष गुरुवार के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें.
इसके बाद पूजा स्थल पर एक साफ चौकी पर लाल या पिले रंग का वस्त्र बिछाएं.
अब एक कलश में साफ जल भरकर उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत और सिक्का डालें.
फिर कलश पर आम या अशोक की पांच पत्तियों को रखकर उसपर नारियल रखें.
चौकी पर कलश स्थापित करने के लिए कुछ चावल रखें और उसके ऊपर कलश रखें.
अब कलश पर हल्दी-कुमकुम लगाएं, फूल-माला अर्पित करके कलश का पूजन करें.
देवी महालक्ष्मी की प्रतिमा को कलश के पास स्थापित करें और उनका श्रृंगार करें.
देवी की प्रतिमा को हल्दी-कुमकुम लगाएं, फूल अर्पित करें और घी का दीपक जलाएं.
फिर मां लक्ष्मी को मिठाई, खीर और फलों का भोग अर्पित करें.
इसके बाद वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें या सुने और उनके मंत्रों का जप करें.
इस दौरान महालक्ष्मी नमन अष्टक का पाठ करें और आखिर में आरती उतारें.
महालक्ष्मी व्रत का महत्व
माता लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है. दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करके सुख-समृद्धि की कामना की जाती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास में देवी लक्ष्मी की पूजा को अत्यंत फलदायी माना जाता है. इस दिन भक्त व्रत रखकर अपने जीवन की सभी समस्याओं और दुखों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं. मान्यता है कि मार्गशीर्ष गुरुवार का व्रत व पूजन करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.
उत्पन्ना एकादशी
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। वर्ष 2020 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 11 दिसंबर को रखा जायेगा।
मार्गशीर्ष अमावस्या
मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन व दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। धार्मिक रूप से इस अमावस्या का महत्व भी कार्तिक अमावस्या के समान ही फलदायी माना जाता है। इस दिन भी माता लक्ष्मी का पूजन शुभ माना जाता है। स्नान, दान व अन्य धार्मिक कार्यों के लिये भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। दर्श अमावस्या को पूर्वजों के पूजन का दिन भी माना जाता है। वर्ष 2020 में मार्गशीर्ष अमावस्या का उपवास 14 दिसंबर को है।
विवाह पंचमी
अमावस्या के बाद शुरु होगा मार्गशीर्ष माह का शुक्ल पक्ष, इस पखवाड़े में जो पहली महत्वपूर्ण तिथि है वह है पंचमी तिथि। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है। माना जाता है प्रभु श्री राम का माता सीता से विवाह इसी दिन संपन्न हुआ था। इसलिये यह दिन मांगलिक कार्यों के लिये भी बहुत शुभ माना जाता है। यह 19 दिसंबर को है।
मोक्षदा एकादशी व गीता जयंती
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है यह एकादशी धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का उपवास रखने व्रती को मोक्ष मिलता है इसलिये इसका नाम भी मोक्षदा है। साथ ही यह भी मान्यता है हिंदूओं के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इसलिये इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह पवित्र तिथि 25 दिसंबर को है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा – दत्तात्रेय जयंती
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भी धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इस दिन को दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का ही अंश माना जाता है जिन्होंनें अत्री ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया की कोख से जन्म लिया। 2020 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत और भगवान दत्तात्रेय जयंती का पर्व 30 दिसंबर को है।
मार्गशीर्ष मास में शंख पूजन से मिलता है सौभाग्य, कभी नहीं होगी धन की कमी
अगहन मास में शंख पूजा विधि
पुराणों के अनुसार, अगहन मास में इस विधि से शंख पूजन करना चाहिए। शंख को लेकर उसमें देवता का वास मान पूरे विधि-विधान से पूजा करें। सभी सामग्री सहित पूजा आरंभ करें। वैसे ही शंख की पूजा करें जैसे आप किसी इष्ट को पूजते हैं। आपको बता दें कि अगहन मास में साधारण शंख की पूजा पंचजन्य शंख की पूजा के समान मान्य है। अगहन मास में शंख की पूजा सो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि अगहन मास में खास तौर पर गुरुवार के दिन लक्ष्मी पूजन करते समय दक्षिणावर्ती शंख की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके अलावा भी प्रतिदिन घर में शंख पूजन करने से जीवन में कभी भी रुपए-पैसे, धन की कमी महसूस नहीं होती।
शंख पूजन की सामग्री की सूची :
* शंख
* कुंमकुंम,
* चावल,
* जल का पात्र,
* कच्चा दूध,
* एक स्वच्छ कपड़ा,
* एक तांबा या चांदी का पात्र (शंख रखने के लिए)
* सफेद पुष्प,
* इत्र,
* कपूर,
* केसर,
* अगरबत्ती,
* दीया लगाने के लिए शुद्ध घी,
* भोग के लिए नैवेद्य
* चांदी का वर्क आदि।
ऐसे करें शंख का पूजन –
* प्रात: काल में स्नान कर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें।
* पटिए पर एक पात्र में शंख रखें।
* अब उसे कच्चे दूध और जल से स्नान कराएं।
* अब स्वच्छ कपड़े से उसे पोंछें और उस पर चांदी का वर्क लगाएं।
* तत्पश्चात घी का दीया और अगरबत्ती जला लीजिए।
* अब शंख पर दूध-केसर के मिश्रित घोल से श्री एकाक्षरी मंत्र लिखें तथा उसे चांदी अथवा तांबा के पात्र में स्थापित कर दें।
* अब उपरोक्त शंख पूजन के मंत्र का जप करते हुए कुंमकुंम, चावल तथा इत्र अर्पित करके सफेद पुष्प चढ़ाएं।
अगहन मास में निम्न मंत्र से शंख पूजा करनी चाहिए।
अगहन मास में पंचजन्य पूजा मंत्र
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥
* नैवेद्य का भोग लगाकर पूजन संपन्न करें।
जिस तरह से सावन महीने में भगवान शिव की, कार्तिक महीने में भगवान विष्णु की विशेष उपासना की जाती है, उसी तरह से मार्गशीर्ष के महीने में धन और ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी (Goddess Mahalakshmi) की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष का महीना भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) को अत्यंत प्रिय है. इस पावन महीने में महिलाएं मार्गशीर्ष गुरुवार व्रत (Margashirsha Guruvar Vrat) का पालन करती हैं, जिसे महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat) के नाम से जाना जाता है. दरअसल, हिंदू पंचांग का नौंवा महीना मार्गशीर्ष या अगहन कहलाता है. इस माह के प्रत्येक गुरुवार को बेहद शुभ माना जाता है और इस दिन देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है.
महालक्ष्मी व्रत को मार्गशीर्ष गुरुवार व्रत के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी की कृपा के साथ-साथ धन, सफलता और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस साल मार्गशीर्ष का महीना अमावस्या के अगले दिन यानी 15 दिसंबर से शुरू हो रहा है. चलिए जानते हैं मार्गशीर्ष गुरुवार व्रत की तिथियां, महालक्ष्मी की पूजा विधि और महत्व.
धार्मिक शास्त्रों और ज्योतिष में शंख का अत्यंत महत्व है। शंख का इसे कुबेर का प्रतीक भी माना जाता है। आइए, जानते हैं ग्रहों के प्रभाव को कैसे शांत करें शंख के माध्यम से…
* सोमवार को शंख में दूध भरकर शिवजी को चढ़ाने से चंद्रमा ठीक होता है।
* मंगलवार को शंख बजाकर सुंदरकांड पढ़ने से मंगल का कुप्रभाव कम होता है।
* बुधवार को शालिग्राम जी को शंख में जल व तुलसा जी डालकर अभिषेक करने से बुध ग्रह ठीक होता है।
* शंख का केसर से तिलक कर पूजा करने से भगवान विष्णु व गुरु की प्रसन्नता मिलती है।
* शंख सफेद कपड़े में रखने से शुक्र ग्रह बलवान होता है।
* शंख में जल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
* लक्ष्मी पूजा में शंख की पूजा करने से धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
अगहन मास में ऐसे करें शंख की पूजा, महालक्ष्मी कर देगी मालामाल