मार्गशीर्ष माह में है शंख पूजन
का विशेष महत्व, जानिए सामग्री, मंत्र एवं पूजा विधि
श्रीमद्भागवत के अनुसार, श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है ‘मासानां मार्गशीर्षोंहम्’ अर्थात् सभी महिनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है। इस महीने में शंख की साधाना करने से श्रीकृष्ण के साथ ही लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
इस तरह करें पूजा
– अगहन मास में मोती शंख में साबूत चावल भरकर रखें, बाद में इसकी पोटली बनाएं और तिजोरी में रख लें।
– अगहन मास में दक्षिणावर्ती शंख में दूध भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
– भगवान विष्णु के मंदिर में शंख का दान करें, इससे भी धन संबंधित समस्याओं में लाभ होगा।
– जिस स्थान पर पीने का पानी रखते है वहां दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर रखें, इससे पितृदोष कम होगा।
– अपने पूजन स्थान पर दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करें और रोज विधि-विधान से इसकी पूजा करें।
– दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल व केसर मिलाकर माता लक्ष्मी का अभिषेक करें, तो धन लाभ होगा।
– किसी पवित्र नदी में शंख प्रवाहित करें और माता लक्ष्मी से मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
– पानी की टंकी में शंख रखें इससे घर में बरकत बढ़ती है और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
– एक सफेद कपड़े में सफेद शंख चावल व बताशे लपेटकर नदी में बहाएं। इससे शुक्र के दोष दूर होंगे।
– अगहन मास में रोज तुलसी के साथ दक्षिणावर्ती शंख की भी पूजा करें। शुद्ध घ्ज्ञी का दीपक लगाएं।
इनका कहना है:
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान विष्णु ने अर्जुन से कहा था कि ‘मासानां मार्गशीर्षोंहम्’ अर्थात् सभी महिनों में मार्गशीर्ष मास श्रेष्ट है। ये महीना श्रीकृष्ण के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु कार्तिक मास की एकादशी को जागते है। उसी दिन से विष्णु का मास की शुरूआत हो जाती है।
” द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत: दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते
यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत् “
अर्थात् शंख दो प्रकार के होते हैं:- दक्षिणावर्ती एवं वामावर्ती। लेकिन एक तीसरे प्रकार का भी शंख पाया जाता है जिसे मध्यावर्ती या गणेश शंख कहा गया है।
* दक्षिणावर्ती शंख पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है। यह शंख जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है। इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत: होता है।
* वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं।
* दक्षिणावर्ती शंख के प्रकार :
दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है।
* दक्षिणावर्ती शंख पूजा :
दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए। शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करें। प्रतिदिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य-पुष्प से पूजा करें और तुलसी दल चढ़ाएं।
प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन- सम्पत्ति में वृद्धि होती है। तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है। चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से संतान प्राप्ति होती है। प्रतिदिन पूजन के बाद 108 बार या श्रद्धा के अनुसार मंत्र का जप करें।
धन प्राप्ति में सहायक दक्षिणावर्ती शंख :
शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।
*यदि मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।
*यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।
*मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज ‘ॐ श्री महालक्ष्मै नम:’ 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
इसी तरह प्रत्येक शंख से अलग अलग लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
दक्षिणावर्ती शंख पूजन का लाभ :
शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं।
सेहत में फायदेमंद दक्षिणावर्ती शंख:
शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।
शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है।
पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है।
श्रेष्ठ दक्षिणावर्ती शंखके लक्षण:-
शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ:
अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:
अर्थात् निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समानवाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात् मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणोंवाला शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए। क्षीरसागर में शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ में शंख अत्यधिक पावन माना जाता है। इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से किया जाता है।